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कुछ शेर-3 / अर्श मलसियानी

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(1)
खयाले-तामीर1 के असीरों,करो न तखरीब2 की बुराई,
बगौर3 देखो तो दुश्मनी के करीब ही दोस्ती मिलेगी।
 
(2)
खुश्क बातों में कहां ऐ शैख4 कैफे-जिन्दगी,
वह तो पीकर ही मिलेगा जो मजा पीने में है।

(3)
आने दो इल्तिफात 5में कुछ और भी कमी,
मानूस6 हो रहे हैं तुम्हारी जफा7 से हम।

(4)
'अर्श' पहले यह शिकायत थी खफा होता है वह,
अब यह शिकवा है कि वह जालिम खफा होता नहीं।

(5)
इस इन्तिहाए-तर्के-मुहब्बत8 के बावजूद,
हमने लिया है, नाम तुम्हारा कभी-कभी।

1.तामीर - निर्माण, रचना, इमारत बनाना 2.तखरीब - (i) तामीर का उल्टा, बरबादी, विनाश, विध्वंस (ii) बिगाड़, खराबी 3.बगौर - ध्यान से 4.शैख - पीर, गुरू, धर्माचार्य 5इल्तिफात - (i) प्यार, लगाव (ii) कृपा, दया, मेहरबानी (iii) तवज्जुह 6मानूस - आसक्त, मुहब्बत करने वाला 7.जफा - सितम, अत्याचार 8.इन्तिहाए-तर्के-मुहब्बत - मुहब्बत का बिल्कुल परित्याग