भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ संकल्प नये सत्वर लें / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ संकल्प नये सत्वर लें।
आओ मन की बातें कर लें॥

दुर्गम पन्थ राह रपटीली
सँभल सँभल पग आगे धर लें॥

मंजिल तक पहुँचाने वाली
ढूंढें कोई नई डगर लें॥

निज हित जीवन जीते सारे
पर हित भाव हृदय में भर लें॥

मधु रितु के पीछे सब पागल
हाथों में हम ही पतझर लें॥

क्या गुलाब हो पायेंगे सब
नीम फूल से अँजुरी भर लें॥

सबके भवन काँच से निर्मित
क्योंकर हाथों में पत्थर लें॥

हर रस्ते पर शूल बिछे हैं
राह कौन-सी फिर चुन कर लें॥

सुख कब किसके हिस्से आया।
कुछ सुविधाएँ कुछ ठोकर लें॥