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कुण्डलियाँ / कँटरेंगनी के फूल / विजेता मुद्गलपुरी
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लंका जलते देख के रावण देलकै शाप
राम अयोध्या एक दिन जलतो अपने आप
जलतो अपने आप जलैतो तोरे वानर
हाथ सेकतो ओय पर राजनीति के आन्हर
राम कहै वाला पर सभ्भे करतो शंका
एक दिन भारत भे जैतो हमरे सन लंका
लैलक परदेशी घटा हवा भेल गद्दार
जहाँ-तहाँ बरसे लगल हियाँ-हुँआँ हथियार
हियाँ-हुँआँ हथियार शस्त्र भेंटल खैराती
छूटल सब आचार बढ़ल दिन-दिन उतपाती
ई बरखा के लाभ पुरुलिया बेसी पैलक
भेल पता नै कोन हवा ई बरखा लैलक
खादी छै कि ई कहो, राजनीति के खाल
अपराधी भी के रहल एक्कर इस्तेमाल
एक्कर इस्तेमाल करै संसद में आबै
एकरा जनता नै एकरा ते जिन्न जिताबै
कहै विजेता दल-दल भटकै अवसर वादी
अन्दर में पिस्तौल रखै उप्पर से खादी