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कूचये दिलदार से बादे सवा आने लगी / प्रेमघन
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कूचये दिलदार से बादे सवा आने लगी।
जुल्फ मुश्की रुख प बल खा-खा के लहराने लगी॥टेक॥
देख कर दर पर खड़ा मुझ नातवां को वह परी।
खींच कर तेगे़ अदा बतर्ह झुँझलाने लगी॥
जुल्फ़ मुश्की मार की बढ़-बढ़ के अब तो पैर तक।
नातवां नाकाम उश्शाकों को उलझाने लगी॥
देखकर कातिल को आते हाथ में खंजर लिए.
खौफ से मरकत मेरी बेतर्ह थर्राने लगी॥
हो नहीं सकती गुज़र मेहफिल में अब तो आपके.
बदजुबानी गालियाँ साहेब ये सुनवाने लगी॥
देख कर चश्मे ग़िजाला यार की बेताब हो।
बीच गुलशन के कली नरगिस की मुरझाने लगी॥
जा रहा है सैर गुलशन के लिए वह सर्वकद।
शोखिये पाजे़ब की याँ तक सदा आने लगी॥
चश्म गिरियाँ की झड़ी मय की लगाए देख कर।
हँस के बिजली वह परी पैकरभी कड़काने लगी॥1॥