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केकरो जग ई फूल लगै / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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केकरौ जग ई फूल लगै
केकरौ तेॅ बस धूल लगै।
ठंडा-ठंडा कोय नै बोलै
सब गेलै छै ‘कूल’ लगै।
कतेॅ दिन खटिया ऊ चलतै
जेकरोॅ टुटलोॅ चूल लगै।
दुख मेॅ सब रिश्ता केॅ खौजे
सुख मेॅ रिश्ता भूल लगै।
हेनोॅ कैन्हें नाव हिलै छै
कुछ गड़बड़ मस्तूल लगै।