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कैसा समय / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
ये कैसा समय है, दोस्तो
कि शिनाख़्त और तसदीक के बिना
झूठीपड़ रही है हमारी नागरिकता
चौराहे पर खड़े युवा लफंगे
माँग रहे हैं सच्चे और बूढ़े आदमी से
देश के प्रति उसकी वफ़ादारी का सुबूत
ये कैसा समय है, दोस्तो
कि चौकन्ना रहना नहीं भूलता
दुख में डूबा हुआ आदमी
आसान नहीं है अब
किसी के दुख में शामिल होना
शोकसभा में अब हर बार
पहुँच जाती है लोगों से पहले
लोगों के लौटने की जल्दी
ये कैसा समय है, दोस्तो
कि फैल रही है हमारी दुनियाँ
धरती के दूसरे छोर तक
मगर हमारे कानों को सुनाई नहीं देता
बग़ल से आता हुआ आर्तनाद
लगातार तेज़ी से डूब रहे हैं
हमारे आसपास के चेहरे
और हम तलाश रहे हैं हर समय
अपने लिए कोई नया और बेहतर चेहरा
ये कैसा समय है, दोस्तो।