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कैसे करें बताओ बसर कुछ नहीं बचा / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
कैसे करें बताओ बसर कुछ नहीं बचा
बख्शा था जो ख़ुदा ने इधर कुछ नहीं बचा
मौजेसबा‚ न तितली भंवर कुछ नहीं बचा
काटे हैं हमने जब से शजर कुछ नहीं बचा
दर्या तरस रहा है घटाओं के वास्ते
पानी गया है सर से गुज़र कुछ नहीं बचा
सड़कें बनी तो बाग़ोबग़ीचे उजड़ गए
खाएंगे अब कहाँ से समर कुछ नहीं बचा
मौसम ख़िज़ां का रहने लगा है सदा यहाँ
धूएं का यूं हुआ है असर कुछ नहीं बचा
शोले बरस रहे हैं धरा पर गगन से अब
दूषित हवा का देखो क़हर कुछ नहीं बचा
दुश्वार हो गया है यहाँ जीना एक पल
सपने गए हैं सारे बिखर कुछ नहीं बचा