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कैसे छुपाऊँ राज़-ए-गम दीदा-ए-तर को क्या करूँ / हसरत मोहानी

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कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँ.
दिल की तपिश को क्या करूँ सोज़-ए-जिगर को क्या करूँ.

शोरिश-ए-आशिक़ी कहाँ और मेरी सादगी कहाँ
हुस्न को तेरे क्या कहूँ अपनी नज़र को क्या करूँ.

ग़म का न दिल में हो गुज़र, वस्ल की शब हो यूँ बसर
सब ये क़ुबूल है मगर ख़ौफ़-ए-सहर को क्या करूँ.
 
हाल मेरा था जब बुरा तब न हुई तुम्हें खबर
बाद मेरे हुआ असर अब मैं असर को क्या करूँ.