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कोई ज्ञान की बात सुनता नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
कोई ज्ञान की बात सुनता नहीं है
कभी सत्य की राह चलता नहीं है
पड़ीं पाँव में सत्य की श्रृंखलाएँ
इसी से उसे कोई चुनता नहीं है
सदा देखता कर्म है दूसरों के
कभी कृत्य अपने निरखत नहीं है
डगर है अँधेरी कई शूल बिखरे
कोई पैर रस्ते पे धरता नहीं है
दिया दृष्टि में आस का हैं जलाते
दिये संग मगर कोई जलता नहीं है
चला चल पथिक राह पर तू अकेला
सदा साथ तो कोई चलता नहीं है
दिलायेगी मन्ज़िल तुझे राह तेरी
ये सच है कि ये आम रस्ता नहीं है
किसी को किसी का नहीं ग़म सताता
मगर बात ये कोई कहता नहीं है
समन्दर है लहरों की बाहें पसारे
इधर कोई दरिया गुजरता नहीं है