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कोई पहचान बाकी है न अब चेहरा बचा है / ध्रुव गुप्त

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कोई पहचान बाकी है न अब चेहरा बचा है
हमारे पास खोने के लिए अब क्या बचा है

कभी थे लोग जो अहसास मिलकर बांटते थे
कोई भी शख्स अपने दौर में ख़ुद सा बचा है

वज़ह है आज भी थोड़ी किसी से दुश्मनी की
अभी भी प्यार करने का बहुत मौक़ा बचा है

ये हंगामा है या रिश्ते मिटा देने की ज़िद है
हमारे दिल की गहराई में क्या काँटा बचा है

जो हमसे ख़त्म है रिश्ता कभी ऐसे भी आओ
अभी सुनने सुनाने को तो कुछ क़िस्सा बचा है

जो शाम आई है तो आएंगे यादों के परिंदे
मेरे पहलू में लंबा सा मेरा साया बचा है

ज़रा सा फ़र्क तो पड़ता है सबकी ज़िंदगी में
अगर आंखों में कोई एक भी सपना बचा है