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कोई मिल जाये राह-ए-इश्क में हमदम अगर अच्छा / मनु भारद्वाज
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कोई मिल जाये राह-ए-इश्क़ में हमदम अगर अच्छा
तो कट जाता है यारो ज़िन्दगानी का सफ़र अच्छा
इबादत-गाह होती हैं ये कुटियाएँ ग़रीबों की
तेरे शीशे के महलों से मेरा मिट्टी का घर अच्छा
ज़माने की ख़बर में सुर्खियाँ होंगी गुनाहों की
ज़माने की ख़बर रखने से मैं तो बेख़बर अच्छा
मिटा डाले जो ख़ौफ़े-रहज़नी धरती के सीने से
कहीं से लाइयेगा ढूँढकर वो राहबर अच्छा
‘मनु’ जो साथ दे साथी वही है लोग कहते हैं
मुहब्बत को ख़ुदा समझे वही है हमसफ़र अच्छा