भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई शायद दूर हम से जा रहा है / अनु जसरोटिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई शायद दूर हम से जा रहा है
बेसबब ही दिल नहीं घबरा रहा है

जिसकी ख़ातिर हर सितम सहते रहे हैं
आज पत्थर हम पे वो बरसा रहा है

उसकी इक इक बात को करती हूं याद अब
जूं कोई बच्चा सबक दुहरा रहा है

कुछ पता चलता नहीं है,फिर भी कोई
धीरे धीरे ज़िन्दगी में आ रहा है

‘सब्सिडी’ देने से बाज़ आते नहीं हैं
और ख़ज़ाना है कि घटता जा रहा है

गीत गाता, गुनगुनाता शोर करता
एक झरना पर्वतों से आ रहा है

जिसमें पूरखों की सदाऐं गंूजती थीं
बेच के उस घर को वो पछता रहा है

झूम उट्ठे पेड़ भी जंगल के सारे
बांसुरी की धुन पे कोई गा रहा है