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कोई शायद दूर हम से जा रहा है / अनु जसरोटिया
Kavita Kosh से
कोई शायद दूर हम से जा रहा है
बेसबब ही दिल नहीं घबरा रहा है
जिसकी ख़ातिर हर सितम सहते रहे हैं
आज पत्थर हम पे वो बरसा रहा है
उसकी इक इक बात को करती हूं याद अब
जूं कोई बच्चा सबक दुहरा रहा है
कुछ पता चलता नहीं है,फिर भी कोई
धीरे धीरे ज़िन्दगी में आ रहा है
‘सब्सिडी’ देने से बाज़ आते नहीं हैं
और ख़ज़ाना है कि घटता जा रहा है
गीत गाता, गुनगुनाता शोर करता
एक झरना पर्वतों से आ रहा है
जिसमें पूरखों की सदाऐं गंूजती थीं
बेच के उस घर को वो पछता रहा है
झूम उट्ठे पेड़ भी जंगल के सारे
बांसुरी की धुन पे कोई गा रहा है