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कोई हो न हो पर तेरी याद होगी / सिया सचदेव

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कोई हो न हो पर तेरी याद होगी
चलो दिल की दुनियाँ तो आबाद होगी

सितम मुझ पे तुम और भी कर के देखो
न लब पे गिला और न फ़रियाद होगी

मेरे घर में फिर भी अँधेरा रहेगा
जहाँ में सहर रात के बाद होगी

वहाँ बस मोहब्बत के गुल ही खिलेंगे
वो बस्ती जो नफ़रत से आज़ाद होगी

इसी आसरे पर सहे ज़ुल्म हम ने
सितम की भी कोई तो मीयाद होगी

सिया इंतज़ार अब तो है उस घड़ी का
के जब जिस्म से रूह आज़ाद होगी