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कोटि-कोटि कंदर्प-दर्पहर हैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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कोटि-कोटि कंदर्प-दर्पहर हैं माधव सौन्दर्य-निधान।
तुहें देखते ही बढ़ आयी इनमें सुन्दरता सुमहान॥
माधव हैं सौन्दर्य अतुल-माधुर्य-रस-सुधा पारावार।
शशि-ज्योत्स्नासे सागरकी ज्यों उठती आनन्दोर्मि अपार॥
देखो! कैसे विह्वल हो, ये भूल स्वरूपानन्द पवित्र।
तव मुख-कमल-निरीक्षण-सुखमें खड़े विभोर लिखे-से चित्र॥