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कोरस / शरद कोकास
Kavita Kosh से
उन जंगलों में
जहाँ हवा की गूंज साफ सुनाई देती थी
और भी बहुत सारी आवाजे़ थीं
चिड़ियों के चहकने और
पत्तों के खड़कने के सिवा
शेर की माँद से आ रही थी
खर्राटों की आवाज़
जिन में अभी अभी मरे हिरणों की
अंतिम चीख थी
बिल्लियाँ दबे पाँव चलती थीं
चूहों का नर्म गोश्त खाती थीं
हाथियों की चिंघाड़ का मतलब
पेट भर हरे पत्ते मिल जाना था
सियार की हुआँ-हुआँ का
उसकी भूख से कोई ताल्लुक़ न था
जंगल की आवाज़ों में
तमाम आवाज़ों के अलावा
चींटी की आवाज़ भी शामिल थी
जिस पर आज तक किसी ने
कान नहीं दिये थे
आश्चर्य यह कि
जंगल में सबसे तेज़ आवाज़
उस जानवर की थी
जो सबसे ज़्यादा डरा हुआ था
जिसे नहीं था कोई भय
वह ख़ामोश था।
-1997