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कौआ / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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कौआ बहुत सयाना होता ।
कर्कश इसका गाना होता ।।

पेड़ों की डाली पर रहता ।
सर्दी, गर्मी, वर्षा सहता ।।

कीड़े और मकोड़े खाता ।
सूखी रोटी भी खा जाता ।।

सड़े माँस पर यह ललचाता ।
काँव-काँव स्वर में चिल्लाता ।।

साफ़ सफ़ाई करता बेहतर ।
काला-कौआ होता मेहतर ।।