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कौन मसीहा / यतींद्रनाथ राही

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कौन मसीहा नया
उतर कर
अपना उजला भाग्य लिखेगा

कुंठाओं से ग्रस्त
त्याग के चोले पहन
भरम पाले हैं
बाहर से उजले है जितने
भीतर से उतने काले हैं
इनके चरण चिन्ह पर चलकर
हमें, कौन सा स्वर्ग मिलेगा?

कन्धे टूट गए रथ ढोते
तपती रेत पाँव में छाले
हाथों में धर गए झुनझुने
राम राज्य के सपनों वाले
गरज-गरज कर
अभी गए फिर
सुनते हैं
कल जल बरसेगा।

ऐसे तो तुम नहीं गिरे हो
कब तक आसमान ताकोगे
तख्त-ताज ही बाँटे अब तक
किससे
चुटकी भर माँगोगे?
श्रम की बूँद
कलम में गति है
पत्थर से
अमृत निचुड़ेगा।