भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन है जो मुझको भीतर रोकता है / अमन मुसाफ़िर
Kavita Kosh से
कौन है जो मुझको भीतर रोकता है
ख़ुद से ही जाने से बाहर रोकता है
कौन मुझको बाँधता यादों से उसकी
कौन दिल पर हाथ रखकर रोकता है
कोई प्रतिमा रो रही इसमें छिपी-सी
हाथ देकर एक पत्थर रोकता है
मैं शहर जाता हूँ जब भी गाँव से तो
घर पुराना एक जर्जर रोकता है
खोजता था पहले नदियों को समंदर
आज नदियों को समंदर रोकता है
भावना से भावना कैसे मिले अब
सबके अंदर कोई एक डर रोकता है
रोकने से उसके रुकना चाहिए फिर
कोई जब आँखों को भरकर रोकता है
कोई जब हाथों से रोके लाज़िमी है
कोई तो आँखों से खंज़र रोकता है
झूठ के सैलाब में एक सत्य को वह
धार के विपरीत जाकर रोकता है