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कौन है जो मुझको भीतर रोकता है / अमन मुसाफ़िर

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कौन है जो मुझको भीतर रोकता है
ख़ुद से ही जाने से बाहर रोकता है

कौन मुझको बाँधता यादों से उसकी
कौन दिल पर हाथ रखकर रोकता है

कोई प्रतिमा रो रही इसमें छिपी-सी
हाथ देकर एक पत्थर रोकता है

मैं शहर जाता हूँ जब भी गाँव से तो
घर पुराना एक जर्जर रोकता है

खोजता था पहले नदियों को समंदर
आज नदियों को समंदर रोकता है

भावना से भावना कैसे मिले अब
सबके अंदर कोई एक डर रोकता है

रोकने से उसके रुकना चाहिए फिर
कोई जब आँखों को भरकर रोकता है

कोई जब हाथों से रोके लाज़िमी है
कोई तो आँखों से खंज़र रोकता है

झूठ के सैलाब में एक सत्य को वह
धार के विपरीत जाकर रोकता है