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कौसर बानो का अजन्मा बेटा / शरद कोकास

Kavita Kosh से
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पृथ्वी पर मनुष्य के जन्म लेने की घटना
इतनी साधारण है अपनी परम्परा में
कि संवेदना में कहीं कोई हस्तक्षेप नहीं करती

इसके निहितार्थ में है इसकी असामान्यता
जो ठीक उस तरह शुरू हुई
जैसे कि एक जीवन के अस्तित्व में आने की शुरुआत होती है

अपनी देह के पूर्ण होने के शिल्प में
जीवन के लिए आवश्यक जीवद्रव्य लिए
बस कुछ ही दिनों बाद बाहर आना था उसे
अपनी माँ कौसर बानो की देह से
और सृष्टि की इस परम्परा में
अपनी भूमिका का निर्वाह करना था
छोटे-छोटे ऊनी मोजों व दस्तानों के साथ
बुना जा रहा था उसका भविष्य
पकते हुए गुड़ में सोंठ के लड्डुओं के स्वप्न तैर रहे थे

गर्भवती कौसर बानो की तरह
इठलाती हुई चल रही थी बसंती हवा
उसमें घुसपैठ करने की कोशिश में थीं कुछ अफ़वाहें
भौतिक रूप से जिन अफ़वाहों में
कुछ जली हुई लाशों की गन्ध थी

रेल के थमते हुए पहियों से
एक चीख़ निकलकर आसमान तक पहुंची थी
जिसमें दब कर रह गए थे पीर-पैगम्बरों के सन्देश
और सृष्टि के कल्याण के लिये रचे गए मंत्र

विवेकशून्य भीड़ के मंच पर मंचित
नृशंसता के प्रदर्शन से बेख़बर कौसर बानो
इमली की खटाई चखते हुए
गर्भ मंे करवट लेते बेटे से
एक तरफा बातें करने में मशगूल थी
पृथ्वी चल रही इस हलचल से अधिक उसे परवाह थी
अपने ज़िस्म पर उग आई इस पृथ्वी की
वहीं ब्रह्मांड में कीड़े-मकोड़ों की तरह रेंगने वाले जीव
इस पृथ्वी को कई हिस्सों में बाँट देने के लिये बेताब थे

मातृत्व की गरिमा और
मानवता के इतिहास की अवमानना करते हुए
उन्माद की एक लहर उठी
दया, रहम, भीख जैसे शब्दों की धज्जियाँ उड़ाते हुए
हवा में एक तलवार लहराई
और क्रूरता का यह अध्याय लिख दिया गया
अगले ही क्षण लपटों के हवाले था
पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश में लिथड़ा
आदम और हव्वा के जिगर का वह टुकड़ा

यह हमारी नियति है कि
कल्पना से परे ऐसे दृश्यों को देखने के लिए
हम जीवित हैं इस संसार में
कौसर बानो के उस बेटे की नियति यही थी
कि यह सब देखने के लिए
उसने इस संसार में जन्म नहीं लिया।

दो

कौसर बानो का अजन्मा बेटा
हमारा ही कोई रिश्तेदार था दूर का
वह भी उसी माँ का बेटा था
जिसकी आदिमाता
हज़ारों साल पहले
अफ्रीका के जंगलों से आई थी
उसके भीतर भी था
वही माइटोकोंड्रिया जीन
जो उस आदिमाता से होते हुए
उसकी माँ कौसर बानो तक पहुँचा था

आदिमानव से आधुनिक कहलाने की यात्रा में
बेटियों की भ्रूण हत्या पर गर्व करने वाली
मनुष्य प्रजाति के लिए यह बात
भले ही गले से न उतरे
भले ही वह इसे जायज सिद्ध करने के लिए
बदला, अपमान, प्रतिक्रिया जैसे शब्द चुन ले
कौसर बानो के अजन्मे बच्चे की हत्या के लिए
उसे क्षमा नहीं किया जा सकता

अपना अपराध बोध कम करने के लिए
कहा जा सकता है कि अच्छा हुआ
जो उसने पाप के बोझ से दबी इस धरा पर जन्म नहीं लिया
वरना वह क्या देखता
चिता की तरह राख हो चुकी बस्तियाँ
जले हुए बाज़ारों
टूटे हुए मन्दिरों-मस्जिदों, विहारों और मज़ारों के सिवा

अपनी आँख खुलते ही उसे दिखाई देते
कीचड़ से अटे घरों के खंडहर
जिनमें पानी भरकर करंट प्रवाहित किया गया था
ढूँढ़ा गया था एक नायाब तरीका
इंसान की नस्ल ख़त्म करने का

वह किस चाची या मौसी की गोद में खेलता
खोल दिए गए थे जिनके जिस्म
सीपियों की मानिन्द
और स्त्रीत्व का मोती लूटकर
जिन्हें चकनाचूर कर दिया गया था

शायद ही नसीब होता उसे
उसे अपने बदनसीब चाचा का कन्धा
जिसकी नज़रों के सामने
उसकी बारह साल की बच्ची की योनि में
सरिया घुसेड़ दिया गया

बस बहुत हो चुका कहकर
कान बन्द कर लेने वाले सज्जनों
कविता में वीभत्स रस या अश्लीलता पर
नाक-भौं सिकोड़ने वाले रसिक जनों
इस आख्यान को पूर्वाग्रह से ग्रस्त न समझें
सिर्फ एक बार कौसर बानो की जगह
अपनी बहन या बेटी को रखें और महसूस करें
अतिशयोक्तियों से भरी हुई नहीं है
कौसर बानो के अजन्मे बेटे की दास्तान
यह कदापि सम्भव नहीं है फिर भी
क्रिया और प्रतिक्रिया की इस दुनिया से दूर
फिर कहीं जन्म लेने की कोशिश में होगा
वह अजन्मा देवशिशु
देवकी की सातवीं बेटी की तरह
कंस के हाथों से निकल कर
आकाश में अट्टहास कर रहा होगा
या जन्म मरण के तथाकथित बन्धन से मुक्त होकर
देख रहा होगा अपनी उन बहनों को
जो अभी भी टूटे घर के किसी कोने में
डर से छुपी बैठी होंगी
अपनी गीली शलवारों में पेशाब के ढेर के बीच

अभी भी बिखरे होंगे जूते-चप्पल गलियों में
पिघली हुई दूध की बोतलें और खिलौने
जली हुई साइकिलें और औज़ार
खंडहर के ढेर पर खड़े अभी हँस रहे होंगे
हिटलर के मानस पुत्र

वही कहीं अभी समय कसमसा रहा होगा
एक दुःस्वप्न से जागने की तैयारी में

धर्म की परिभाषा को
विकृत करने वाली इस सदी में
समय सबक ले रहा होगा मनुष्यों से
अभी फिर कहीं किसी कौसर बानो के गर्भ में
पल रहा होगा कोई अभिमन्यु
अन्याय को इतिहास में दर्ज करने की अपेक्षा में
इस दुष्चक्रव्यूह को
अंतिम बार ध्वस्त करने की प्रतिज्ञा करता हुआ।

-2002