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क्या कमी कुछ रह गयी थी प्यार में / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
क्या कमी कुछ रह गयी थी प्यार में
देर क्यों कर दी बहुत इजहार में
डूब कर जाना पड़ेगा पार अब
नाव जर्जर छेद हैं पतवार में
सिर कटा कर ही मिलेगा लुत्फ़ तो
इश्क तो बिकता नहीं बाज़ार में
काम है फूलों का मुरझाना मगर
चूनरें उलझीं हमेशा ख़ार में
मिल नहीं पाती जिन्हें है नौकरी
वक्त हैं वो काटते बेगार में
सच पढ़ें यह ताब अब किसमें रही
छप रही झूठी खबर अखबार में
जी रहे सब ख्वाहिशों के वास्ते
नाम मज़हब का लिया बेकार में