क्या किया मैंने कि इज़हारे-तमन्ना कर दिया/ हसरत मोहानी
हुस्ने-बेपरवा को<ref>स्वयं को भूले हुए सौन्दर्य को</ref> ख़ुदबीन<ref >स्वयं के प्रति सचेत</ref>ओ ख़ुदारा<ref > हे भगवान
!</ref> कर दिया
क्या किया मैंने कि इज़हारे-तमन्ना<ref>इच्छा की अभिव्यक्ति</ref> कर दिया
बढ़ गयीं तुम से तो मिल कर और भी बेताबियाँ
हम ये समझे थे कि अब दिल को शकेबा <ref >शान्त</ref> कर दिया
पढ़ के तेरा ख़त मेरे दिल की अजब हालत हुई
इज़्तराब-ए-शौक़<ref>इच्छाओं के उपद्रव</ref> ने इक हश्र बरपा<ref >तूफ़ान खड़ा कर दिया</ref> कर दिया
हम रहे याँ<ref >यहाँ</ref> तक तेरी ख़िदमत<ref >सेवा</ref> में सरगर्मो-नियाज़<ref >व्यस्त</ref>
तुझको आख़िर आश्ना-ए-नाज़-ए-बेजा<ref >झूठे घमण्ड की भावना से भर दिया</ref> कर दिया
अब नहीं दिल को किसी सूरत, किसी पहलू क़रार<ref >चैन</ref>
इस निगाहे-नाज़<ref >आकर्षक आँखों </ref> ने क्या सिह्र<ref >जादू</ref> ऐसा कर दिया
इश्क़ से तेरे बढ़े क्या-क्या दिलों के मर्तबे<ref >स्तर</ref>
मेह्र<ref >सूर्य जैसा</ref> ज़र्रों<ref >तिनकों</ref> को किया क़तरों<ref >बूँदों</ref> को दरिया कर दिया
तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझको क्या मजाल
देखता था मैं कि तूने भी इशारा कर दिया
सब ग़लत कहते थे लुत्फ़े-यार को वजहे-सकून
दर्दे-दिल इसने तो ‘हसरत’ और दूना कर दिया