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क्यों धरा है आज प्यासी इस तरह / मृदुला झा
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क्यों धरा है आज प्यासी इस तरह
हो रहीं नदियां सियासी इसतरह।
जान की परवा किसे है आजकल
फैली है हरसू उदासी इसतरह।
रो रहे माँ बाप क्यों सुनसान में
बढ़ रही क्यों बदहवासी इसतरह।
कौन जाने कब मिले इसकी दवा
हो रही सबकी तलाशी इसतरह।
खुश रहें सबलोग इस संसार में
दूर हो सबकी उदासी इसतरह।