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खनक कुछ कम भी हो तो कम नहीं है / गुलाब खंडेलवाल

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खनक कुछ कम भी हो तो कम नहीं है
ये मन का राग है, सरगम नहीं है

ख़ुशी के साथ जायें आप, जायें
नहीं है आँख मेरी नम, नहीं है

किनारों पर किनारे आ रहे हैं
मुझे अब डूबने का ग़म नहीं है

मुझे देखा जो, थोडा मुस्कुराये
दया इतनी भी उनकी कम नहीं है

कहीं दो-एक खिल भी जायँ तो क्या!
गुलाब! अब आपका मौसम नहीं है