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ख़ुद अपनी ही प्रतीक्षा में (शर्तों का गणित) / वेणु गोपाल

तुम्हारी शर्त तुम्हारा कमरा है
तुम्हारे कमरे की शर्त
वह अंधेरा है
जो
उसी की औलाद है
तुम्हारा कहना यह है
कि दुनिया
तुम्हारी शर्तों पर ही
तुमसे मिल सकती है।

तुम
यह भूल जाते हो
कि दोस्त
तुम्हारे कमरे में नहीं जनमते।

दुनिया में होते हैं
और
वहीं से
तुम्हारे कमरे में आते हैं
और
वे कोई शर्त नहीं मानते।

दुनिया की अपनी शर्तें होती हैं।
जिनके तहत
तुम्हारा कमरा मुमकिन होता है।

तुम
अपने कमरे में हो
फिर भी दुनिया में हो।

शर्तों के इस गणित ने
तुम्हारे होने को
तुम्हारी ही नज़र में
संदिग्ध बना दिया है।


रचनाकाल : 12 जनवरी 1979