ख़ुद अपनी ही प्रतीक्षा में (सुरक्षा के करतब) / वेणु गोपाल
कमरा
तुम्हारे लिए
एक सम्पूर्ण सुरक्षा है।
सदा सुरक्षित रहने की चिंता
तुम्हें असुरक्षित करती है।
तुम
अपने से बाहर रहने को अभिशप्त हो
क्योंकि तुम
सदा-सर्वदा
अपने कमरे के भीतर रहना चाहते हो।
कमरे में बैठे आदमी के लिए
सब बराबर है
फ़ायरिंग-लाठीचार्ज़ हो या औरतों की आवाजाही
या फिर
ख़ुद का दफ़्तर आना-जाना और थक कर सो जाना
नज़र
सिर्फ़ अपने पर रहती है
और
इस पर
कि अपना ही हुक्म बराबर माना जा रहा है या नहीं?
'जागो, उठो, सो जाओ, जाओ, आओ-- और
बिना किसी हील-हुज्जत के सब मानते चले जाओ।'
सुरक्षा की चिंता
आदमी को कैंची बना देती है
और
वह उस आकाश के लिए
ख़तरा हो जाता है
जिसे
ज़िन्दगी और दोस्त मुहैय्या करते हैं
कमरे में समन्दर होता है,
फिर भी
आकाश
जब तब
सितारों से
तुम्हें
छू लिया करता है।
रचनाकाल : 12 जनवरी 1979