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खाये हैं धोखे राह से जनता के पाँव ने / ईश्वर करुण
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खाये हैं ढोकह राह से जनता के पाँव ने
रहबर रहे गढ़ते भले नारे लुभावने ।
ये कैसा राम-राज है कैसा है लोकतंत्र
भोगा है बेरुखी भरा बनवास गाँव में।
‘बरसों से ही रौनक भरा चेहरा नहीं मिला’
पूछा है आसमान से पीपल के छाँव ने।
कातिल भी आँखें मीच के अब देखता है कत्ल
शैतान बलात्कार को कहता घिनावने ।
अच्छे बजट के वास्ते मेरे बधाइयाँ
भेजा है अपना ताल महाजन वो साव ने।
मेरे जात की औकात और धरम के मर्म को
बतला दिया है देश में होते चुनाव ने।
आतंक का साया है जले जा रह हैं हम
तोड़ा है दम ये देखकर खुद ही अलाव ने।
‘ईश्वर’ बादल के लायेगा ठहरी हुई सुबह
खाई है ये कसम अब आजिज़ हवाओं ने ।