भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाली अपने सुर नै तानोॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खाली अपने सुर नै तानोॅ
कहिया होतै दिवस सुहानोॅ?

लोग बुझेॅ कि जगलोॅ कोय छै
कुछ गल्लोॅ केॅ हेनोॅ टानोॅ।

केना ई बाजार चलै छै
आलू-बैगन वड़लोॅ-कानोॅ।

लोग प्यास सेॅ मरलोॅ जाय छै
पथरोॅ पर तोंय कुइयाँ खानोॅ।

बिना सुदिन के कुछ नै मिलथौं
कत्तोॅ उछलोॅ, कूदोॅ फानोॅ।