भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खिली गुलाब की दुनिया तो है सभीके लिये / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खिली गुलाब की दुनिया तो है सभीके लिये
मगर गुलाब है खिलता किसी-किसीके लिये

न मौत के लिये आये न ज़िन्दगी के लिये
तड़पने आये हैं दुनिया में दो घड़ी के लिये

अदाएं तेरी जो, ऐ ज़िन्दगी! सँभाल सके
कलेजा चाहिए पत्थर का आदमी के लिये

ये हमने माना कि जीवन है एक अँधेरी रात
कभी तो वे भी चले आयें रोशनी के लिये

करेगा कौन उन्हें प्यार अब हमारी तरह!
न चाँद फिर कभी निकलेगा चाँदनी के लिये

जहां भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की
हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिये