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खिली जब से देखो कली फाग की है / मृदुला झा
Kavita Kosh से
हृदय में अगन ज्यों लगी फाग की है।
मिलन के मधुर पल हैं लो आ गए हम,
निगोरी हवा जब चली फाग की है।
हरी ओढ़नी ओढ़ इठला रही है,
दिलों में बसी दिलकशी फाग की है।
कली फूल बन खिल-खिलाने लगी है,
लगे अब सुबह भी भली फाग की है।
लगे आम महुआ में मंजर यहाँ हैं,
घड़ी आ गई मखमली फाग की है।
मिले जब मिलन के मधुर मास में हम,
निराली लगी हर गली फाग की है।