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खिल रहे जिंदगी के सुमन के लिये / रंजना वर्मा
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खिल रहे जिंदगी के सुमन के लिये
हाथ अपने उठायें नमन के लिये
प्यास बुझती रहे कामना कण्ठ की
नीर-गंगा मिले आचमन के लिये
मन भटकने न पाये उचित मार्ग से
ढूंढ लें राह सच की गमन के लिये
कीजिये दूसरों की भलाई सदा
वैर की भावना के शमन के लिये
देश ने जिस सँवारी है यह जिंदगी
कर उसे दें निछावर वतन के लिये
खुशबुएं बाँध झोली में लायी हवा
खिल रही है कली भी चमन के लिये
आँसुओं से है पुर नम नज़र हो रही
कुछ बचा ही नहीं अंजुमन के लिये
जो भी संकल्प हो हम निभायें सदा
चाहे तन के लिये या कि मन के लिये
आज फिर आ गयी हौसले की घड़ी
पाप लंका पुरी के दहन के लिये