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खुरदुरे दिन / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी
पानी भरी छत-सी
टपकती ही रही
बचपन से
खुरदुरे दिन बाज़ आए नहीं
दंशन से
क्रम नहीं टूटे दुखों के
तोड़ कर हमको
गालियाँ देते रहे
हर एक मौसम को
किसी सरिता के किनारे
पड़े पाहन-से
जी रहे हैं बड़े बेमन से