भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेमटा 2 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
गोरे चमड़े की चकती चलाओ बचा॥टे।॥
इन गोरे गुलगुल गालन पर लखन लोग लुभाओ बचा।
नाक छेदि नकछेद अहिर की बाबू लाल बुलाओ बचा।
माजी को माई देकर बबुआजी को बिलमाओ बचा।
मन्नू लाल बहादुर मल बुढ़वन को काहे सताओ बचा।