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खेलत सुन्दर स्याम सखिन सँग ब्रज रस-होरी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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खेलत सुन्दर स्याम सखिन सँग ब्रज रस-होरी॥
भरि पिचकारी चोवा-चंदन रँग भरि केसर-रोरी।
डारत सखियन-‌अंग स्याम, नटवर-तन सब मिलि गोरी।
मच्यौ घमसान घनौ री॥

भूमि लाल, नभ-लाल, ललित रँग सब दिसि लाल छयौ री।
लाल लता-तरु, लाल, सुमन-फल, निधुबन लाल भयौ री॥
आन को‌उ रँग न रह्यौ री॥

मोर-चकोर लाल भ‌ए, अलि-कुल रंग गुलाल लह्यौ री।
लाल निकुंज, लाल सुक-कोकिल, लाल रसाल बन्यौ री॥
लाल ही बीज बयौ री॥

लाल दिवस-निसि, लाल सूर्य-ससि, लाल छितिज सु छयौ री।
लाल सलिल कालिंदी सोभित, लाल बयार बह्यौ री॥
लाल दधि-दूध-मह्यौ री॥

लाल स्वर्नजुत, लाल सु-मरकत बसन-बेस बनयौ री॥
लाल अलक, दृग-पलक लाल भ‌इँ, लाल सु-बचन कह्यौ री।
लाल ही लाल सुन्यौ री॥

ललना-लाल लाल भ‌ए दो‌ऊ, सखी लाल रँग बोरी।
नील-पीत पट, चुनरी-पगरी-सबै लाल रँग घोरी॥
सकल जग लाल भयौ री॥