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खोलो यह तिमिर-द्वार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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तिमिर दुयार खोलो— एसो, एसो नीरवचरणे ।

खोलो यह तिमिर द्वार रखतीं नीरव चरण आओ ।
ओ ! जननी सनमुख हो, अरुण अरुण किरणों में आओ ।।
पुण्य परस से पुलकित आलस सब भागे ।
बजे गगन में वीणा जगती यह जागे ।।
जीवन हो तृप्त मिले सुधा-रस तुम्हारा ।
जननी ओ ! हो सनमुख, ज्योति चकित नयनों में
आओ, समाओ ।।


मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'पूजा' के अन्तर्गत 41 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)