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गरचे सौ चोट हमने खाई है / ध्रुव गुप्त
Kavita Kosh से
गरचे सौ चोट हमने खाई है
अपनी दुनिया से आशनाई है
ज़िंदगी तू अज़ीज़ है हमको
तेरी क़ीमत बहुत चुकाई है
जिनसे कुछ वास्ता नहीं मेरा
किसलिए उनकी याद आई है
दिल की बातें ज़मीं पे लिखता है
धूप सूरज की रोशनाई है
गम ख़ुशी का ये बदलता मंज़र
दिलों के हाथ की सफाई है
ख्व़ाब में सौ दफ़ा आते रहिए
ऐसे मिलने में कब ज़ुदाई है
जिसकी है वह भला बुरा जाने
हमने दुनिया कहां बनाई है
आप ग़ज़लों में दर्द मत खोजो
हमने अपनी हंसी उड़ाई है