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गलहार बन्देमातरम् / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'
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मूल कुमाउनी कविता : गलहार बन्देमातरम्
छीनी न सकनी कभै सरकार बन्देमातरम्,
हम गरीबन को छ यो गलहार बन्देमातरम्।
हम त वी छौं जोकि हुण चैंछ हमन ये बखत पर,
आज कूंणा लागि रछ संसार बन्देमातरम्।
दुर्जनन को मन जली भंगार हूं छ वी बखत,
कान में जब पुजनछ झंकार बन्देमातरम् ।
जेल में चाखा पिसण औ भूख लै मरणा बखत,
वी बखत लै य कणि करिया प्यार बन्देमातरम्।
मौत का मुख में खडा़ कूणा लागा हत्यार थें,
ठोकि दे ठोठ्याड‐ में तलवार बन्देमातरम्।
बैदि लै नाड़ी देखी मुनलै हिलै बेर कै दियो,
यो त देषभक्ती को छ बेमार बन्देमातरम्।
होलि दिवाली ईद है लै लाड़िलो छ सौ गुना,
मानणे छ एक ही यो त्यार बन्देमातरम्।
छीनी न सकनी कभै सरकार बन्देमातरम।