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ग़म का तन्हा ही तुझे साथ निभाना होगा / सिया सचदेव

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ग़म का तन्हा ही तुझे साथ निभाना होगा
तू जो ख़ुश है तो तेरे साथ ज़माना होगा

एक उजड़ी हुई महफ़िल को सजाना होगा
आज तुझको मेरे ग़म खाने पे आना होगा

एक हम क्या तेरा दीवाना ज़माना होगा
देख ले तुझे इक बार दीवाना होगा

फूल ही फूल हो दामन में ज़रुरी तो नहीं
ख़ार से भी कभी दामन को सजाना होगा

तेरी ख़ातिर तेरे माँ-बाप ने क्या कुछ ना किया
कुछ न कुछ क़र्ज़ तो उनका भी चुकाना होगा

अजनबी हैं मगर अपना सा नज़र आता है
उस से लगता है कोई रिश्ता पुराना होगा

उनके माथे पे शिकन आ गयी सच है लेकिन
हाल ए दिल फिर भी सिया उनको सुनाना होगा