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गांव आने पर / प्रेमशंकर रघुवंशी

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गाँव में दाखिल होने के पहले
बरगद को टेरा
तो वह
जटाजूट छिटाकाये चौके तक चला आया
दूध भरा दोना लिए
सोडल बाबा से
आवाज़ें लगाईं खेतों को
तो वे फसलों सहित
खलिहानों तक महकते चले आए
शहर से लौटकर
जब भी आता
थूनी-थूनी रम्हा उठता मेरा गाँव।