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गान / लक्ष्मीकान्त मुकुल
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चली आ रही शाम
अब डूबने को आया सूरज
सहमी हैं सीधी गलियां
कोने-कोने में
कर रहे हैं झींगुर-गान
गांव-गिरांव की नींद में
कुनमुनाते दीख रहे हैं बच्चे
मुडेरों पर उचर रहे थे कौवे
गा रहे थे खेतों के पास
कतारब लोग
कोई पराती गीत
अनसुना राग।