(17)
राग कान्हरा
देखो रघुपति-छबि अतुलित अति |
जनु तिलोक-सुषमा सकेलि बिधि राखी रुचिर अंग-अंगनि प्रति ||
पदुमराग रुचि मृदु पदतल धुज-अंकुस-कुलिस-कमल यहि सूरति |
रही आनि चहुँ बिधि भगतिनिकी जनु अनुरागभरी अंतरगति ||
सकल-सुचिन्ह-सुजन-सुखदायक, ऊरधरेख बिसेष बिराजति |
मनहुँ भानु-मण्डलहि सँवारत धर्यो सूत बिधि-सुत बिचित्रमति ||
सुभग अँगुष्ठ, अंगुली अबिरल, कछुक अरुन नख-ज्योति जगमगति |
चरन-पीठ उन्नत नत पालक, गूढ़ गुलुफ, जङ्घा कदलीजति ||
काम तून-तल-सरिस जानु जुग, उरु करिकर करभहि बिलखावति |
रसना रचित रतन चामीकर, पीत बसन कटि कसे सरसावति ||
नाभी सर, त्रिवली निसेनिका, रोमराजिस सैवल-छबि पावति |
उर मुकुतामनि-माल मनोहर मनहु हंस-अवली उड़ि आवति ||
हृदय पदिक, भृग-चरन चिन्हबर-बाहु बिसाल जानुलगि पहुँचति |
कल केयूर पूर कञ्चन-मनि, पहुँची मञ्जु कञ्जकर सोहति ||
सुजव सुरेख सुनख अंगुलिजुत सुन्दर पानि मुद्रिका राजति |
अंगुलित्रान-कमान-बानछबि सुरनि सुखद, असुरनि उर सालति ||
स्याम सरीर सुचन्दन-चरचित पीत दुकूल अधिक छबि छाजति |
नील जलदपर निरखि चन्द्रिका दुरनि त्यागि दामिनि जनु दमकति ||
यज्ञोपबीत पुनीत बिराजत गूढ़ जत्रु बनि पीन अंस तति |
सुगढ़ पुष्ट उन्नत कृकाटिका, कम्बु-कण्ठ-सोभा मन मानति ||
सरद-समय-सरसीरुह-निन्दक मुख सुषमा कछु कहत न बानति |
निरखतही नयननि निरुपम सुख, रबिसुत-मदन-सोम-दुति निदरित ||
अरुन अधर, द्विजपाँति अनूपम, ललित हँसनि जनु मन आकरषति |
बिद्रुम-रचित बिमानमध्य जनु सुरमण्डली सुमन-चय-बरसति ||
मञ्जुल चिबुक, मनोरम हनुथल, कल कपोल, नासा मन मोहति |
पङ्कज-मान-बिमोचन लोचन, चितवनि चारु अमृत-जल सीञ्चति ||
केस सुदेस, गँभीर बचन बर स्रुतिकुण्डल-डोलनि जिय जागति |
लखि नवनील पयोद, रवित सुनि, रुचिर मोर जोरी जनु नाचति ||
भौंहै बङ्क मयङ्क-अंक-रुचि, कुङ्कुमरेख भाल भलि भ्राजति |
सिरसि, हेम-हीरक-मानिकमय मुकुट-प्रभा सब भुवन प्रकासति ||
बरनत रूप पार नहिं पावत निगम-सेष-सुक-सङ्कर-भारति |
तुलसिदास केहि बिधि बखानि कहै यह मन-बचन अगोचर मूरति ||