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(वर्षा-वर्णन 2)
	सब रितु सुखप्रद सो पुरी, पावस अति कमनीय |
	निरखत मनहिं हरत हठि हरित अवनि रमनीय ||
	बीरबहूटि बिराजहीं, दादुर-धुनि चहु ओर |
	मधुर गरजि घन बरषहिं, सुनि सुनि बोलत मोर ||
	बोलत जो चातक-मोर, कोकिल-कीर, पारावत घने |
	खग बिपुल पाले बालकनि कूजत उड़ात सुहावने ||
	बकराजि राजति गगन, हरिधनु, तड़ित दस दिसि सोहहीं |
	नभ-नगरकी सोभा अतुल अवलोकि मुनि-मन मोहहीं ||