(8).राग केदारा
सखि! रघुनाथ-रूप निहारु |
सरद-बिधु रबि-सुवन मनसिज-मान भञ्जनिहारु ||
स्याम सुभग सरीर जन-मन-काम-पूरनिहारु |
चारुचन्दन मनहु मरकत-सिखर लसत निहारु ||
रुचिर उर उपबीत राजत पदिक गजमनि-हारु |
मनहु सुरधनु नखतगन बिच तिमिर-भञ्जनिहारु ||
बिमल पीत दुकूल दामिनि-दुति-बिनिन्दनिहारु |
बदन सुषमासदन सोभित मदन-मोहनिहारु ||
सकल अंग अनूप, नहिं कोउ सुकबि बरननिहारु |
दासतुलसी निखतहि सुख लहत निरखनिहारु ||