(34) लव-कुश-जन्म
सुभ दिन, सुभ घरी, नीको नखत, लगन सुहाइ |
पूत जाये जानकी द्वै, मुनिबधू, उठीं गाइ ||
हरषि बरषत सुमन सुर गहगहे बधाए बजाइ |
भुवन, कानन, आस्रमनि रहे मोद-मङ्गल छाइ ||
तेहि मुनिसों बिदा गवनें भोर सो सुख पाइ ||
मातु-मौसी-बहिनिहूतें, सासुतें अधिकाइ |
करहिं तापस-तीय-तनया सीय-हित चित लाइ ||
किए बिधि-ब्यवहार मुनिबर बिप्रबृन्द बोलाइ |
कहत सब, रिषिकृपाको फल भयो आजु अघाइ ||
सुरुष ऋषि, सुख सुतनिको, सिय-सुखद सकल सहाइ |
सूल राम-सनेहको तुलसी न जियतें जाइ ||