भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली उत्तरकाण्ड पद 31 से 40 तक/ पृष्ठ 8

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(38) रामचरितका उल्लेख

.राग रामकली
रघुनाथ तुम्हारे चरित मनोहर गावहिं सकल अवधबासी |
अति उदार अवतार मनुज-बपु धरे ब्रह्म अज अबिनासी ||

प्रथम ताड़का हति, सुबाहु बधि, मख राख्यो द्विज, हितकारी |
देखि दुखी अति सिला सापबस रघुपति बिप्रनारि तारी ||

सब भूपनको गरब हर्यो, हरि भञ्ज्यो सम्भु-चाप भारी |
जनकसुता समेत आवत गृह परसुराम अति मदहारी ||

तात-बचन तजि राज-काज सुर चित्रकूट मुनिबेष धर्यो |
एक नयन कीन्हों सुरपति-सुत, बधि बिराध रिषि-सोक हर्यो ||

पञ्चबटी पावन राघव करि सूपनखा कुरूप कीन्हीं |
खर-दूषन संहारि कपटमृग-गीधराज कहँ गति दीन्हीं ||

हति कबन्ध, सुग्रीव सखा करि, बेधे ताल, बालि मार्यो |
बानर-रीछ सहाय, अनुज सँग सिन्धु बाँधि जस बिस्तार्यो ||

सकुल पुत्र दल सहित दसानन मारि अखिल सुर-दुख टार्यो |
परमसाधु जिय जानि बिभीषन लङ्कापुरी तिलक सार्यो ||

सीता अरु लछिमन सँग लीन्हें औरहु जिते दास आए |
नगर निकट बिमान आए, सब नर-नारी देखन धाए ||

सिव-बिरञ्चि, सुक-नारिदादि मुनि अस्तुति करत बिमल बानी |
चौदह भुवन चराचर हरषित, आए राम राजधानी ||

मिले भरत, जननी, गुर, परिजन चाहत परम अनन्द भरे |
दुसह-बियोग-जनित दारुन दुख रामचरन देखत बिसरे ||

बेद-पुरान बिचारि लगन सुभ महाराज अभिषेक कियो |
तुलसिदास जिय जानि सुअवसर भगति-दान तब माँगि लियो ||

श्री सीताराम चन्द्रार्पणमस्तु