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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 16 से 20 तक/पृष्ठ 2
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अयोध्यामें प्रतीक्षा
रागआसावरी
अवधि आजु किधौं औरो दिन ह्वैहै |
चढ़ि धौरहर बिलोकि दखिन दिसि, बूझ धौं पथिक कहाँते आये वै हैं ||
बहुरि बिचारि हारि हिय सोचति, पुलकि गात लागे लोचन च्वैहैं |
निज बासरनि बरष पुरवैगो बिधि, मेरे तहाँ करम कठिन कृत क्वैहैं ||
बन रघुबीर, मातु गृह जीवति, निलज प्रान सुनि सुनि सुख स्वैहैं |
तुलसिदास मो-सी कठोर-चित कुलिस सालभञ्जनि को ह्वैहैं ||