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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 16 से 20 तक/पृष्ठ 2

(17)

अयोध्यामें प्रतीक्षा
 
  रागआसावरी
  अवधि आजु किधौं औरो दिन ह्वैहै |
  चढ़ि धौरहर बिलोकि दखिन दिसि, बूझ धौं पथिक कहाँते आये वै हैं ||

  बहुरि बिचारि हारि हिय सोचति, पुलकि गात लागे लोचन च्वैहैं |
  निज बासरनि बरष पुरवैगो बिधि, मेरे तहाँ करम कठिन कृत क्वैहैं ||

  बन रघुबीर, मातु गृह जीवति, निलज प्रान सुनि सुनि सुख स्वैहैं |
  तुलसिदास मो-सी कठोर-चित कुलिस सालभञ्जनि को ह्वैहैं ||