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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 1 से 5 तक/पृष्ठ 4

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 सुनु खल! मैं तोहि बहुत बुझायो |
  एतो मान सठ! भयो मोहबस, जानतहू चाहत बिष खायौ ||

  जगत-बिदित अति बीर बालि-बल जानत हौ, किधौं अब बिसरायो |
  बिनु प्रयास सोउ हत्यो एक सर, सरनागतपर प्रेम देखायो ||

  पावहुगे निज करम-जनित फल, भले ठौर हठि बैर बढ़ायो |
  बानर-भालु चपेट लपेटनि मारत, तब ह्वैहै पछितायो ||

  हौं ही दसन तोरिबे लायक, कहा करौं, जो न आयसु पायो |
  अब रघुबीर-बान-बिदलित उर सोवहिगो रनभूमि सुहायो ||

  अबिचल राज बिभीषनको सब, जेहि रघुनाथ-चरन चित लायो |
  तुलसिदास यहि भाँति बचन कहि गरजत चल्यो बालि-नृप जायो ||