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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 11 से 20 तक/पृष्ठ 1


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हनूमान् और रावणकी भेण्ट

राग कान्हरा

सत्य बचन सुनु मातु जानकी !
जनके दुख रघुनाथ दुखित अति, सहज प्रकृति करुनानिधानकी ||

तुव बियोग-सम्भव दारुन दुख बिसरि गई महिमा सुबानकी |
नतु कहु, कहँ रघुपति-सायक-रबि, तम-अनीक कहँ जातुधानकी ||

कहँ हम पशु साखामृग चञ्चल, बात कहौं मैं बिद्यमानकी!
कहँ हरि-सिव-अज-पूज्य-ग्यान-घन, नहि बिसरति वह लगनि कानकी ||

तुव दरसन-सन्देस सुनि हरिको बहुत भई अवलम्ब प्रानकी |
तुलसिदास गुन सुमिरि रामके प्रेम-मगन नहि सुधि अपानकी ||