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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 11 से 20 तक/पृष्ठ 2


(12)

रावन! जू पै राम रन रोषे |
को सहि सकै सुरासुर समरथ, बिसिष काल-दसननितें चोषे ||

तपबल, भुजबल, कै सनेह-बल सिव-बिरञ्चि नीकी बिधि तोषे |
सो फल राजसमाज-सुवन-जन आपु न नास आपने पोषे ||

तुला पिनाक, साहु नृप, त्रिभुवन भट-बटोरि सबके बल जोषे |
परसुराम-से सूरसिरोमनि पलमें भए खेतके धोषे ||

कालिकी बात बालिकी सुधि करि समुझि हिताहित खोलि झरोखे |
कह्यो कुमन्त्रिनको न मानिये, बड़ी हानि, जिय जानि त्रिदोषे ||

जासु प्रसाद जनमि जग पुरषनि सागर सृजे, खने अरु सोखे |
तुलसिदास सो स्वामि न सूइयो, नयन बीस मन्दिर के-से मोखे ||