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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 11 से 20 तक/पृष्ठ 3
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राग मारु
जो हौं प्रभु-आयसु लै चलतो |
तौ यहि रिस तोहि सहित दसानन! जातुधान दल दलतो ||
रावन सो रसराज सुभट-रस सहित लङ्क-खल खलतो |
करि पुटपाक नाक-नायकहित घने घने घर घलतो ||
बड़े ,समाज लाज-भाजन भयो, बड़ो काज बिनु छलतो |
लङ्कनाथ! रघुनाथ-बैरु-तरु आजु फैलि फूलि फलतो ||
काल-करम, दिगपाल, सकल जग-जाल जासु करतल तो |
ता रिपुसों पर भूमि रारि रन जीवन-मरन सुफल तो ||
देखी मैं दसकण्ठ! सभा सब, मोन्तें कोउ न सबल तो |
तुलसी अरि उर आनि एक अब एती गलानि न गलतो ||