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देखी जानकी जब जाइ |
परम धीर समीरसुतके प्रेम उर न समाइ ||
कृस सरीर सुभाय सोभित, लगी उड़ि उड़ि धूलि |
मनहु मनसिज मोहनी-मनि गयो भोरे भूलि ||
रटति निसिबासर निरन्तर राम राजिवनैन |
जात निकट न बिरहिनी-अरि अकनि ताते बैन ||
नाथके गुनगाथ कहि कपि दई मुँदरी डारि |
कथा सुनि उठि लई कर बर, रुचिर नाम निहारि ||
हृदय हरष-बिषाद अति पति-मुद्रिका पहिचानि |
दास तुलसी दसा सो कहि भाँति कहै बखानि ?||